Qateel Shifai

Qateel Shifai Qateel Shifai(24 December 1919 – 11 July 2001) was a Pakistani Urdu poet and lyricist.

Qateel Shifai received the ‘Pride of Performance Award’ in 1994 for his contribution to literature by the Government of Pakistan, Adamjee Literary Award, ‘Naqoosh Award’, ‘Abbasin Arts Council Award’ were all given to him in Pakistan, and then the much coveted ‘Amir Khusro Award’ was given in India. In 1999, he received a ‘Special Millennium Nigar Award’ for his lifetime contributions to the Pakistan film industry.

मुहम्मद औरंगज़ेब(क़तील शिफ़ाई) एक पाकिस्तानी उर्दू भाषा के कवि थे। उन्होंने 1938 में ‘क़तील शिफ़ाई’ को अपने कलम नाम के रूप में अपनाया, जिसके तहत उन्हें उर्दू शायरी की दुनिया में जाना जाता था। “क़तील” उनका “तख़ल्लुस” था और “शिफ़ाई” उनके उस्ताद (शिक्षक) हकीम मोहम्मद याहया शिफ़ा ख़ानपुरी के सम्मान में था, जिसे वे अपना गुरु मानते थे।

Some of the Qateel Shifai chuninda sher

  • किस तरह अपनी मोहब्बत की मैं तकमील करूँ
    ग़म-ए-हस्ती भी तो शामिल है ग़म-ए-यार के साथ
  • तुम पूछो और मैं बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
    एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं

  • क्या मस्लहत-शनास था वो आदमी ‘क़तील’
    मजबूरियों का जिस ने वफ़ा नाम रख दिया

  • गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
    कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है

  • अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
    तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की

  • हमें भी नींद जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
    अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ

  • रहेगा साथ तिरा प्यार ज़िंदगी बन कर
    ये और बात मिरी ज़िंदगी वफ़ा करे

  • गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
    हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं

  • आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
    मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ

  • अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
    इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है

  • गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
    कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है

  • उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
    देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं

  • हमें भी नींद जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
    अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ

  • दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
    लोग अब मुझ को तिरे नाम से पहचानते हैं

  • अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
    इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है

(Source: As read on Wikipedia)

Qateel Shifai Shayari

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