Mir Muhammad Taqi, known as Meer Taqi Meer, was an Urdu poet of the 18th century Mughal India and one of the pioneers who gave shape to the Urdu language itself. He was one of the principal poets of the Delhi School of the Urdu ghazal and is often remembered as one of the best poets of the Urdu language.
His pen name (takhallus) was Mir (میر). He spent the latter part of his life in the court of Asaf-ud-Daulah in Lucknow.
ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो।
अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है।
मीर की ग़ज़लों के कुल ६ दीवान हैं। इनमें से कई शेर ऐसे हैं जो मीर के हैं या नहीं इस पर विवाद है। इसके अलावा कई शेर या कसीदे ऐसे हैं जो किसी और के संकलन में हैं पर ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि वे मीर के हैं।
(Source: As read on Wikipedia)
Meer Taqi Meer Shayari and Poem
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Some Latest Added Poems of Meer Taki Meer
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- बेखुदी ले गयी कहाँ हम को – मीर तक़ी ‘मीर’
- ‘मीर’ दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की – मीर तक़ी ‘मीर’
- तुम नहीं फ़ितना-साज़ सच साहब – मीर तक़ी ‘मीर’
- न सोचा न समझा न सीखा न जाना – मीर तक़ी ‘मीर’
- फ़क़ीराना आए सदा कर चले – मीर तक़ी ‘मीर’
- यारो मुझे मुआफ़ करो मैं नशे में हूँ – मीर तक़ी ‘मीर’
- यार बिन तल्ख़ ज़िंदगनी थी – मीर तक़ी ‘मीर’
- क्या कहूँ तुम से मैं के क्या है इश्क़ – मीर तक़ी ‘मीर’
- जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा – मीर तकी “मीर”
- हस्ती अपनी हबाब की सी है – मीर तकी मीर
Meer Taki Meer Chuninda Sher Shayari
- दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके
पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़ कर
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया‘मीर’-साहिब ज़माना नाज़ुक है
दोनों हाथों से थामिए दस्तारफिरते हैं ‘मीर’ ख़्वार कोई पूछता नहीं
इस आशिक़ी में इज़्ज़त-ए-सादात भी गईमत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैंयाद उस की इतनी ख़ूब नहीं ‘मीर’ बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगाअमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर
कि हम फ़क़ीर हुए हैं इन्हीं की दौलत से‘मीर’ हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुम से प्यारे
इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहोसिरहाने ‘मीर’ के कोई न बोलो
अभी टुक रोते रोते सो गया हैशाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ
दिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस कादिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले‘मीर’ साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो
आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ‘मीर’ हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुम से प्यारे
इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहो