दियो का कद घटाने के लिए रातें बड़ी करना ,
बड़े शेहरो में रहना हो तो बातें बड़ी करना
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मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सबको नहीं आता ,
किसी को छोड़ना हो तो फिर मुलाकातें बड़ी करना
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भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
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जो पत्थरों से न उलझे वो आइना क्या है
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किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया
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तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी.
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हम अपने चारागो की लौ को कम नहीं करते
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रात आती तो यही ख्वाब दिखाई देता
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लकीरें हाथ की अपने वह सब जला लेगा
तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुजरी है
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वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है
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हर ख़ुशी जिस पे लुटा दी हमने
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लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
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आज तुम याद बेहिसाब आये
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गम ने तेरे निचोड़ लिया कतरा कतरा खून
थोड़ा सा दर्द दिल में खटकने को रह गया
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लुत्फ़ इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी इतने उठाए हैं कि जी जानता है
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निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का
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निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का
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निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का
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दिल दे तो इस मिजाज़ का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी को खुशी में गुज़ार दे
– दाग